तुम नाम नहीं हो। तुम नाम से कहीं ज्यादा हो। नाम तो जगत व्यवहार है पर भ्रांति हमारी ऐसी है कि व्यवहार को हम सत्य मान लेते हैं। हम सब अनाम हैं, असीम हैं, अव्याख्य हैं। हमारा होना विराट है। नाम से बाँध कर हम स्वयं को छोटा कर लेते हैं।हमारे भीतर के सत्य का कोई स्वरूप नहीं, न कोई व्याख्या है और न ही उसकी कोई सीमा है।नींद में भी तुम्हें तुम्हारा नाम भूल जाता है, फिर मृत्यु की बात ही क्या। कितनी ही बार तुमने जन्म लिया और हर जन्म में तुम्हारा एक नाम रहा होगा जो तुम्हें याद नहीं।सब पानी पर लिखी लकीरों जैसे मिट गए। न जाने कितनी बार हम उसी उसी भ्रांति में पड़ते रहे हैं।यहाँ तुम ही नहीं सभी भटके हुए हैं। मनुष्य बेहोश है, बेसुध है, अंधा है।आँख खोलकर देखोगे तो पाओगे नाम तो सभी झूठ हैं, कहीं है ही नहीं। जब तुम्हें तुम्हारा नाम मिला तब तुम्हें होश नहीं था लेकिन परिजनों से रोज़ रोज़ सुनते सुनते तुम इस नाम से ऐसे सम्मोहित हो गए कि उसे ही स्वयं मान बैठे।तुम्हारा सम्मोहन गहरा है, इतना गहरा कि तुम इससे बाहर नहीं हो पाते। तुमने अपनी मुट्ठी ज़ोर से भींची हुई है और खोलने से घबरा रहे हो क्योंकि तुम्हें पता है कि मुट्ठी खाली है और डर है कि कहीं मुट्ठी खाली है ऐसा दिखाई न पड़ जाए।जगत में मनुष्य की सबसे बड़ी पीड़ा यही है कि कहीं ये दिखाई न पड़ जाए कि मुझे मेरा पता नहीं है, कि मैं अपने आप से अपरिचित हूँ, कि मैं इतना मूर्च्छित हूँ कि मैं ये भी नहीं जानता कि मैं कौन हूँ।
कोई भी यहाँ मानने को तैयार नहीं कि भूल स्वयं में है, कि मैं भूल में हूँ। ये सोचकर कि दुनिया होगी भूल में, मनुष्य स्वयं को बचाए चला जाता है।मेरा न कोई नाम है न कोई पता ठिकाना, इस सत्य का उद्घाटन जिसके भीतर हो जाए तो उसके जीवन में पहली बार मूर्छा टूटती है और थोड़ा होश जगना शुरू होता है। धर्म और है क्या ? धर्म आत्म साक्षात्कार की प्रक्रिया है।भीतर एक लौ को जलाना है जिसके प्रकाश में जो हम हैं उसे भर आँख देख सकें, पहचान सकें।जागरूक होना है, साक्षी बनना है।और तब तुम जान पाओगे कि न तो देह हो तुम और न ही मन हो तुम।तो फिर नाम क्या, जाति क्या, धर्म क्या और देश क्या। इन सबका उससे कुछ लेना देना नहीं है जो तुम हो।जब तक मनुष्य साक्षी नहीं है, जब तक स्वयं के भीतर जागृति का दिया नहीं जला है, जब तक ध्यान की ज्योति नहीं जगमगाई है तब तक वह मात्र एक यंत्र है और ऐसे ही चलते रहोगा एक यंत्र की तरह, बेहोश। |
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