राम हमारे देवता ही नहीं, राम हम भारतवासियों की आस्था हैं और वे हमारे हृदय में धड़कन बनकर धड़कते हैं।लेकिन यक्ष प्रश्न ये है कि राम नवमी की छुट्टी मनाने वाले तमाम सरकारी महक़मों से जुड़े लोगों ने उन्हीं भगवान राम के अस्तित्व को आज संदेह और चर्चा का विषय बना रखा है।उस पर हैरानी ये कि देश के बड़े सियासतदान सुप्रीम कोर्ट में जाकर कहते हैं कि राम का अस्तित्व ही नहीं है ! पर प्रश्न अब सियासत से नहीं है, प्रश्न अब हमें स्वयं से, अपने भीतर बैठे राम से पूछना होगा क्योंकि राम मात्र देवता नहीं, राम हमारे देश का सवेरा हैं, हमारे देश की संध्या हैं जहाँ हम एक दूसरे से मिलने पर कहते हैं ‘राम-राम जी’ और जब अंतिम विदाई होती है तो कहते हैं ‘राम नाम सत्य है’ !
आज हम आज़ादी की बहुत बातें करते हैं लेकिन आज़ादी के इतने सालों बाद भी अपने ही भारत में, अपने ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम के सर से तरपाल हट जाए और उन्हें एक छत दे सकें इसके लिए आज भी संघर्ष कर रहे हैं।इससे ज़्यादा धैर्य की परीक्षा और क्या हो सकती है ? क्या ये हमारे धैर्य की सीमा नहीं है ? इस पर और आश्चर्य तब होता है जब ‘जय श्रीराम’ कहने पर हम सांप्रदायिक हो जाते हैं।सोचिए कि आज़ाद हिंदुस्तान में इतने साल बाद भी राम का नाम लेना सांप्रदायिक हो गया। लेकिन ये किसी का दृष्टिकोण हो सकता है। मेरे लिए तो ‘जय श्रीराम’ कल भी थे, आज भी हैं और कल भी होंगे। परिस्थिति इसलिए भी अंकुरित और पल्लवित होती है जब मैं अपने 103 वर्षीय गुरुदेव को देखता हूँ जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन को अपने हृदय में जिया है।राम किसी के हृदय में किस तरह स्थापित हो सकते हैं ये मैंने अपने गुरुदेव से जाना है। महत्वपूर्ण राम के नाम का जयघोष या संवाद नहीं, महत्वपूर्ण ये है कि राम जो मात्र विचार नहीं, मात्र चिंतन नहीं हैं, राम वो विचार शक्ति हैं जो अगर किसी भी देश में, दुनिया में विवेकानंद को स्थापित कर सकती है तो श्रीराम अपने आप को, आपके भीतर बैठकर अपने मंदिर का निर्माण भी करा सकते हैं। जानना ज़रूरी है कि जैसे वैटिकन एक है, गिरिजाघर अनेक हो सकते हैं; मक्का-मदीना एक है, मस्जिदें अनेक हो सकती हैं; ऐसे ही राम जन्मभूमि एक है, मंदिर अनेक हो सकते हैं ! सुनने में आता है कि मस्जिद पवित्र धन से ही बनाई जाती है और सोचने वाली बात ये है कि क्या बाबर जैसे आक्रांता का धन पवित्र रहा होगा और उसी मस्जिद में बैठकर अदा की नमाज़ क्या क़बूल होगी? राम जन्मभूमि जिस पर कोर्ट भी निर्णय दे चुकी है कि गुंबद के नीचे का स्थल गर्भगृह यानि भगवान राम का जन्मस्थान है, कुछ और बातें ग़ौर करने वाली हैं - पहला कि बाबरनामे में वलदियत राजा दशरथ लिखा है।एक जगह लिखा है ‘मस्जिद रामजन्म भूमि’ तो क्या एक मस्जिद किसी ऐसे आक्रांता के नाम से बनाई जा सकती है जिसका हमारे देश से कोई संबंध ही नहीं है। जिस बाबर के नाम को पाकिस्तान भारत के विरुद्ध शक्तियों में प्रतीक रूप से प्रयोग करता है उस बाबर का हमारे देश से कैसा लेना देना? इतिहास के पन्नों में झाँकें तो पता चलता है कि केरल के राजा ने मस्जिद के निर्माण के लिए अपना महल दिया था ‘चेरूमल’ जो कि आज भी स्थापित है, मगर आज भी राम को ‘इमाम-ए-हिंद’ कहने वाले उन्हें उनका जन्मस्थल लौटाने की बात से ही विचलित हो उठते हैं।आज भी मैं हृदय से गंगा जमनी तहज़ीब को मानता हूँ जहाँ बल्लेशाह कहते थे ‘आज होली खेलूँगी रसिया कह बिस्मिल्ला’; जहाँ अमीर खुसरो कहते थे ‘छाप तिलक सब छीनी तोसे नैना मिलाइके’ ! हम लोगों के धर्म आज अलग हो सकते हैं मगर हमारे पूर्वज अलग नहीं थे।लेकिन अफ़सोस आज मुख्य पक्षकार इक़बाल अंसारी कहते हैं कि मैं राम पर राजनीति कर रहा हूँ ! एक समय था जब सरदार पटेल ने हाथ में जल लेकर संकल्प लिया था और भगवान सोमनाथ के भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। फिर सियासतदान की अंजलि में लिया संकल्परूपी जल सूख कैसे रहा है ये चिंता का विषय है! हे राम! स्वामी दीपांकर |
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